भारत का पहला Engineer कौन है
भारत का पहला Engineer कौन है
हम किसे भारत का पहला Engineer कहते हैं। वो कहाँ के थे और कब बने और किस फिल्ड में थे। इन सब की जानकारी हम आपको देंगे।
भारत का पहला Engineer जो हैं उनका नाम है Mokshagundam Visvesvaraya (मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ) . इनको भारत में अग्रणी सिविल इंजीनियर में से एक माना जाता है। इनका जन्म 15 सितम्बर 1861 को मद्देनहल्ली, मैसूर, कर्नाटक में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। विश्वेश्वरैया की प्राथमिक शिक्षा बंगलौर में हुई और मद्रास विश्विद्यालय से विज्ञान में स्नातक (B.Sc.) की डिग्री प्राप्त की। विश्वेश्वरैया ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा बॉम्बे विश्विद्यालय में कॉलेज ऑफ़ साइंस से हासिल की। यहीं पे यह डेक्कन क्लब के सदस्य और सचिव भी बनें l

करियर
विश्वेश्वरैया ने ब्रिटिश-भारत सरकार के साथ अपना करियर शुरू किया। बॉम्बे प्रेसिडेंसी और मध्य पूर्व में दूसरे ब्रिटिश-अधिकृत उपनिवेशों में काम किया। बाद में इन्होने हैदराबाद राज्य के लिए काम किया। सेनानिवृति के बाद इन्होने अपना प्रशाशनिक और राजनेता करियर शुरू किया और मैसूर साम्राज्य में अपना इंजीनियरिंग करियर जारी रखा। विश्वेश्वरैया1885 में बॉम्बे प्रेसिडेंसी में लोक निर्माण विभाग , बॉम्बे में सहायक अभियंता बने। 1899 में विश्वेश्वरैया को भारतीय सिंचाई आयोग में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था, जहाँ इन्होने दक्कन के पठार में सिंचाई की एक जटिल प्रणाली को लागु किया स्वचालित वियर वाटर फ्लडगेट की एक प्रणाली को डिज़ाइन किया और पेटेंट कराया। इसको पहली बार 1903 में पुणे के पास खडकवासला बांध में स्थापित किया गया। इन द्वारों ने जलाशय में भण्डारण स्तर को बांध को बिना कोई नुकसान पहुंचाए उच्चतम स्तर तक पहुँचने की संभावना बढ़ा दी। इन द्वारों की सफलता के आधार पर, ग्वालियर के तिगरा बांध और बाद में मैसूर, कर्णाटक में केआरएस बांध में एक ही प्रणाली स्थापित की गयी थी। यह बाद में कोल्हापुर के पास लक्ष्मी तालाब के मुख्या अभियंता बनें। लगभग 1906/1907 में ब्रिटिश-भारत सरकार ने इनको जल आपूर्ति और जल निकासी व्यवस्था का अध्ययन करने के लिए अदन (वर्तमान में यमन ) के ब्रिटिश उप निवेश में भेजा। इनके द्वारा तैयार की गयी परियोजना यमन में सफलतापूर्वक लागु की गयी थी। इन्होने निज़ाम उस्मान अली खान के लिए काम किया। यह हैदराबाद शहर के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रणाली के मुख्य इंजीनियरों में से एक थे। जिन्होंने शहर के लिए बाढ़ राहत उपाय का सुझाव दिया था, जो मुसी नदी द्वारा लगातार खतरे में था। जहाँ आए दिन हमेशा बाढ़ आती रहती थी। यह तब फेमस हो गए जब इन्होनें शहर के लिए बाढ़ सुरक्षा प्रणाली तैयार की। इन्होने विशाखापत्तनम बंदरगाह को समुद्र के कटाव से बचने के लिए एक प्रणाली विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस बांध ने अपने निर्माण के समय एशिया में सबसे बड़ा जलाशय बनाया था। नवम्बर 1909 में इन्हे मैसूर राज्य के एक मुख्य अभियंता के रूप में शामिल किया गया। यह बाद में कर्णाटक के होस्पेट में तुंगभद्रा बांध के लिए इंजीनियरों के बोर्ड अध्यक्ष भी बने।
करियर टाइमलाईन
- मुंबई में सहायक अभियंता, 1885; नासिक, खानदेश (मुख्य रूप से धुले में ) और पुणे में सेवा की
- सुक्कुर, सिंध, 1894 की नगर पालिका को दी गयी नाती सेवाएं ; नगर पालिका के लिए डिज़ाइन और वाटर वर्क्स किया
- कार्यकारि अभियंता, सूरत, 1896
- सहायक अधीक्षक अभियंता, पुणे, 1897-1899; 1898 में चीन और जापान का दौरा किया
- सिंचाई के लिए कार्यकारी अभियंता, पुणे, 1899
- सेनेटरी इंजीनियर, बॉम्बे और सदस्य, सेनेटरी बोर्ड, 1901 ; भारतीय सिंचाई आयोग के समक्ष साक्ष्य दिया
- स्वचालित गेट्स का डिज़ाइन और निर्माण; "ब्लॉक सिस्टम "
- 1903 के रूप में ज्ञात सिंचाई की एक नयी प्रणाली शुरू की:
- शिमला सिंचाई आयोग, 1904 में बॉम्बे सर्कार का प्रतिनिधितव किया
- अधीक्षक अभियंता, 1907; 1908 में मिस्र, कनाडा, अमेरिका और रूस का दौरा किया
- हैदराबाद/निज़ाम राज्य के परामर्शी अभियंता ने मुसी नदी पर इंजीनियरिंग कार्यो का निरिक्षण किया और उन्हें अंजाम दिया
- 1909 की हैदराबाद बाढ़
- मुख्य अभियंता और मैसूर सरकार के सचिव, 1909
- मैसूर के दीवान, लोक निर्माण विभाग और रेलवे, 1913
- टाटा स्टील के निदेशक मंडल, 1927-1955
मृत्यु
विश्वेश्वरैया की मृत्यु 12/14 अप्रैल 1962 को 100 वर्ष की आयु में हुई। विश्वेश्वरैया अपनी ईमानदारी, समय प्रबंधन और अपने उद्देश्य के प्रति समर्पण के लिए जाने जाते थे। विश्वेश्वरैया एक शाकाहारी थे। विश्वेश्वरैया के स्वभाव का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा कन्नड़ भाषा के प्रति उनका प्रेम था। इन्होने कन्नड़ के सुधार के लिए कन्नड़ परिषद् की स्थापना की।
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